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क्या हम आज भी गुलाम है?

हिन्द देश के लिये
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उत्तराखण्ड मे आई आपदा से एक बात समझ मे नही आई कि, हम आज आजाद है या गुलाम है । देश मे लोकतन्त्र है या सजातन्त्र । देश मे कही ना कही आपदा आती ही रहती है, परन्तु हमारे नेताओ का रवैया कैसा रहता है, वो आपदा के समय क्या करते है, ये ही की किस प्रकार जान-माल के नुकसान को कम दिखाया जाये, जिस से उन की अय्याशीयो का किसी को पता नही चल सके कि, किस प्रकार उन को सत्ता देने वाली जनता को ये लोग मरने के लिये छोड देते है, सरकार घोषणा करके इतिश्री कर लेती है, अब घोषणाओ का क्या हुआ उस को देखने वाला कोई नही क्योकि, इन घोषणाओ को देखने का काम मीडीया का है पर वो भी अपना हिस्सा लेकर सच को छुपा लेती है । एक तरफ तो मीडीया ये कहता है कि आपदा मे मरने वाले २५० है, घायलो की संख्या ५०० है, जबकि साथ-साथ ये भी कहता है कि इस त्रासदी मे १०० गांव / कसबो का कुछ भी पता नही चल रहा, २०० किलोमीटर का रास्ता खाई मे चला गया, कई गांव / कसबो से अभी तक कोई सम्पर्क नही हो पा रहा है, सरकार ये नही बता पा रही की वहा पर कितने लोग थे ।

देश / प्रदेश के प्रधानमन्त्री / मुख्यमंत्री प्रभावीत क्षेत्रो का हवाई दौरा करेगे, जिस कारण उस समय राहत / बचाव कार्य बन्द रहेगे । इन सब को देख कर लगता है कि क्या सच मे हम आजाद है । अब आप दुसरे देशो को देखे, थाईलैड मे जब बाढ आई तो वहा की प्रधानमन्त्री युन्ग्लुस्क शीनवतरा ने कोई हवाई दौरा नही किया वो खुद प्रभावीत क्षेत्रो मे लोगो की मदद करती नजर आई । जब आस्ट्रेलिया मे बाढ की आपदा आई तो वहा के प्रधानमन्त्री जुलिया गिल्लर्द प्रभावीत क्षेत्रो मे लोगो की मदद करते नजर आये । जब अमेरिका मे तुफान की त्रासदी हुई तब वहा भी राष्ट्रपती लोगो के बीच मदद करते नजर आये । ये ही हाल विश्व के अधिकाश देशो का है । अब इन लोगो के दो-चार घण्टे लोगो के मदद के लिये खुद आने से कुछ नही होता ये सोच कुछ नाकारा लोगो की हो सकती है, पर सच्चाई ये है कि इस से देश की जनता मे आप की छवी कैसी बनती है, आप की राहत / बचाव की योजना मे लगे लोग अपना काम पूरी मुस्तैदी से करते है, और राहत सब लोगो तक पहुचनी सम्भंव होती है ।

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