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देश का शत्रु देसी हो या विदेशी हर नागरिक का पहला कर्तव्य है, उस का सर्वनाश करे “चाणक्य”

हिन्द देश के लिये
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आचार्य चाणक्य :- जिन लोगों का स्वभाव अधिक सीधा-साधा है, उन्हें ऐसे नहीं रहना चाहिए क्योंकि यह अच्छा नहीं है। वन में हम देख सकते हैं जो पेड़ सीधे होते हैं सबसे पहले काटने के लिए उन्हें ही चुना जाता है।

भावार्थ:- जिन लोगों का स्वभाव जरूरत से ज्यादा सीधा, सरल और सहज होता हैं उन्हें अक्सर समाज में परेशानियों का ही सामना करना पड़ता है। चालक और चतुर लोग इनके सीधे स्वभाव का गलत फायदा उठाते हैं। ऐसे लोगों को दुर्बल ही समझा जाता है। अनावश्यक रूप से लोगों की प्रताडऩा झेलना पड़ती है। अत्यधिक सीधा स्वभाव भी मूर्खता की श्रेणी में ही आता है। अत: व्यक्ति को थोड़ा चतुर और चालक भी होना चाहिए। ताकि वह जीवन में कुछ उल्लेखनीय कार्य कर सके। इसका एक सटीक और प्रत्यक्ष उदाहरण है जंगल में लगे सीधे वृक्ष। सामान्यत: देखा जा सकता है कि जंगल में लगे सीधे वृक्ष ही सबसे काटने के लिए चुने जाते हैं। इसी प्रकार हमारे जीवन में भी जो लोग सीधे-साधे होते हैं उनसे चतुर लोग अनुचित लाभ अवश्य ही उठाते हैं।

आचार्य चाणक्य :- क्रोध हमेशा ही यमराज के समान ही होता है। तृत्णा वैतरणी नदी है और शिक्षा या विद्या कामधेनु के समान है। इसके साथ ही संतोष नन्दन वन है।

भावार्थ:- हमारा क्रोध हर परिस्थिति में नुकसान दायक ही रहता है। क्रोध के वश में होकर इंसान अक्सर कुछ गलत कर बैठता है। जिस प्रकार यमराज इंसान के शरीर को नष्ट कर देते हैं ठीक उसी प्रकार क्रोध भी यही काम करता है। हमारी इच्छाएं या मनोकामनाएं कभी समाप्त नहीं होती है। ये ठीक वैसी ही हैं जैसी वैतरणी नदी। शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि वैतरणी नदी को कोई पार नहीं कर सकता है। उसी प्रकार हमारी इच्छाओं को पार करना असंभव सा ही है, ये कभी समाप्त नहीं होती हैं।
शिक्षा या विद्या कामधेनु के समान होती हैं। ये हर परिस्थिति में हमारा मार्गदर्शन करती है और परेशानियों से बचाती है। शिक्षा के प्रभाव से व्यक्ति जीवन में सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त कर सकता है। हर परिस्थिति में व्यक्ति को संतोष रखना चाहिए। संतोष से ही सुख और आनंद प्राप्त होता है। चाणक्य ने संतोष को देवराज इंद्र की वाटिका के समान माना है। इंद्र की वाटिका परम सुख देने वाली मानी गई है। ठीक इसी प्रकार संतोषी व्यक्ति भी हमेशा ही आनंद प्राप्त कर सकता है।

आचार्य कहते :- यदि किसी व्यक्ति को अपना लक्ष्य प्राप्त करना है तो उसे चाहिए वह पूरी शक्ति लगाकर कार्य करें। ठीक उसी तरह जैसे कोई शेर अपना शिकार करता है।

भावार्थ:- हमें जो भी कार्य करना है वह पूरी ताकत से करना चाहिए। कार्य चाहे जितना छोटा या बड़ा हो हमें पूरी शक्ति लगाकर ही करना चाहिए। तभी हमारी कामयाबी पक्की हो जाती है। जिस प्रकार कोई शेर अपने शिकार पर पूरी शक्ति से झपटता है और शिकार को भागने का मौका नहीं देता, इसी गुण के कारण वह कभी असफल नहीं होता है। हमें सिंह की भांति ही अपने लक्ष्य की ओर झपटना चाहिए, आगे बढऩा चाहिए। कार्य में किसी प्रकार का ढीलापन हुआ तो कामयाबी आपसे दूर हो जाएगी। यही सफलता प्राप्त करने का अचूक उपाय है।

आचार्य चाणक्य :- हमें नदियों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। शस्त्रधारियों पर भरोसा करना खतरनाक हो सकता है। जिन जानवरों के नाखुन और सींग नुकिले होते हैं उन पर विश्वास करने वाले को जान का जोखिम बन सकता है। चंचल स्वभाव की स्त्रियों पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए। इनके साथ ही किसी राज्यकुल के व्यक्ति, शासन से संबंधित लोगों का भी भरोसा नहीं करना चाहिए।

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